चूँ चूँ का मुरब्बा - 1 S Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चूँ चूँ का मुरब्बा - 1

भाग 1

इस कहानी में पढ़िए - धनी परिवार की लड़की रूबी ने गरीब परिवार के लड़के रोमित को प्रोत्साहित कर उसे उसकी मंजिल तक कैसे पहुंचाया .


कहानी - चूँ चूँ का मुरब्बा

बरसात भी झमाझम बरसते बरसते थक कर थमने लगी थी . बारिश से बचने के लिए रोमित स्कूल से लौटते समय एक दुकान की शेड में रुका था . अब वह निकलने की सोच ही रहा था कि एक कार आ कर दुकान के सामने रुकी और एक लड़की उतर कर दुकान में गयी . पांच मिनट बाद वह कुछ सामान ले कर निकल रही थी उसी समय उसकी नजर रोमित पर पड़ी . वह बोली “ हेलो , आप रोमित हैं न ? “


“ हाँ , पर मैंने आपको पहचाना नहीं . “


“ मैं रूबी . मैं भी आपके ही स्कूल में पढ़ती हूँ . “


“ सॉरी , मैंने आपको पहचाना नहीं . “


“ मैं टेंथ तक दूसरे स्कूल में पढ़ी थी . कुछ ही दिन हुए प्लस टू करने यहाँ आयी हूँ . आपसे एक क्लास जूनियर हूँ , इसलिए आप नहीं पहचान पाए . मैंने स्कूल के समारोह में आपकी कवितायें सुनी है और स्कूल मैगज़ीन में भी आपकी अन्य रचनाएँ पढ़ी है . आप कवि और लेखक टू इन वन हैं . “ बोल कर रूबी हँस पड़ी .


“ ऐसा कुछ नहीं है , आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं . अच्छा अब मैं चलता हूँ बारिश भी थम चली है . “


“ शर्मिंदा तो उल्टे आप मुझे कर रहे हैं . आपसे जूनियर हूँ . आपको मुझे तुम कहना चाहिए . अभी भी हल्की हल्की रिमझिम बारिश हो रही है . चलिए आपको कार से मैं छोड़ देती हूँ . “


“ अरे , मैं चला जाऊँगा . आप क्यों तकलीफ करेंगी . “


“ फिर , आप . वैसे अगर तकलीफ होगी भी तो इस कार को जो शायद आपका वजन ढोने में थक जाए . “


रोमित को हँसी आ गयी . तब कार का दरवाजा खोल कर रूबी बोली “ आईये , चलें . “


रूबी का घर पहले आता था . वह अपने घर पर उतर गयी और ड्राइवर से बोली “ काका , इन्हें इनके घर तक छोड़ दीजिये . “


“ मेरा घर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है . फिर रास्ते में सब्जी मंडी से कुछ सब्जियां भी लेनी हैं - माँ ने कहा है . “


“ जैसा आपको ठीक लगे , आपको छोड़ने में हमें या कार या ड्राइवर को कोई तकलीफ नहीं होगी . “


रोमित ने हँसते हुए कहा “ थैंक्स , मैं यहाँ से चला जाऊँगा . “


रोमित एक साधारण परिवार का लड़का था . बचपन में ही उसके पिता काल कवलित हो चुके थे . म्युनिस्पैलिटी के स्कूल में टीचर थे . उसकी माँ मिडिल तक पढ़ीं थीं . अनुकंपा के आधार पर पति की जगह उन्हें छोटी मोटी नौकरी मिल गयी थी . पर ऐसी नौकरी में कोई निश्चित वेतनमान नहीं होता था , बस कॉन्सोलिडेटेड 4000 रूपये महीने मिलते थे . उसी से गुजारा हो रहा था . रूबी के पिता दुग्गल साहब का अपना प्रेस था . रूबी उनकी इकलौती संतान थी . रूबी को साहित्य में थोड़ी बहुत रूचि थी इसलिए वह पिता के प्रेस में छपने वाली रचनाओं को कभी कभी पढ़ा करती थी .


अब कभी कभी रूबी स्कूल से लौटते समय रोमित को कार में लिफ्ट देती . रोमित को संकोच होता पर रूबी की जिद के आगे उसकी एक नहीं चलती थी . एक दिन कार में वह बोली “ मैंने सुना है कि टेंथ बोर्ड में अपने स्कूल में आप टॉपर थे . साइंस में भी आपके बहुत अच्छे मार्क्स थे फिर आपने आर्ट्स क्यों चुना ? “


“ साइंस ले कर क्या करता ? मेरी आर्थिक स्थिति आगे इंजीनियरिंग या मेडिकल पढ़ने की नहीं है .किसी तरह ग्रेजुएशन कर लूँ , फिर भाग्य ने साथ दिया तो क्लर्की मिल जाए तो बहुत है . “


“ क्लर्की कोई जरूरी नहीं है , आजकल ग्रेजुएशन के बाद और भी नए नए रास्ते हैं जिनके द्वारा बेहतर जॉब मिल सकती है . “


“ आजकल कंपीटिशन का जमाना है , बिना कोचिंग के वह भी मुश्किल है . और मैं उसके लिए भी सक्षम नहीं हूँ . “

इतने में रूबी का घर आ गया , ड्राइवर ने गाड़ी रोकी . रूबी के उतरने के पहले रोमित ही उतरने लगा था तो रूबी ने ड्राइवर से कहा “ काका , अभी यहाँ कोई नहीं उतरेगा . मैं भी आज रोमित के घर चलूंगी . “


“ मेरे घर ? “ रोमित आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा

“ हां , मैं भी आपकी माँ से मिलना चाहती हूँ . मेरी माँ को गुजरे तो सात साल हुए , आपकी माँ से मिल कर मुझे बहुत ख़ुशी होगी . “


रोमित ने शहर के पुराने मोहल्ले में एक संकरी गली के पास गाड़ी रोकने को कहा . फिर वह बोला “ कार इससे आगे नहीं जा सकती है . “


कार से उतर कर दोनों उस गली में गए . थोड़ी ही दूर पर रोमित का घर था . रूबी एक छोटे से बरामदे को पार कर एक कमरे में गयी . बरामदे में एक टूटी साइकिल पड़ी थी . कमरे में दिन में भी रौशनी कम होती थी , इसलिए रोमित ने लाइट ऑन कर दिया . लकड़ी की दो पुरानी कुर्सियों के बीच एक स्टूल रखा था . रूबी को बैठने के लिए बोल रोमित ने अंदर जाते हुए कहा “ तुम बैठो , मैं दो मिनट में आता हूँ . “


रोमित ने स्टील की एक थाली में एक ग्लास पानी लाकर स्टूल पर रखा और कहा “ पानी पी लो , माँ आती होगी . “

थोड़ी देर में एक थाली में दो कप चाय और कुछ नमकीन बिस्कुट लेकर माँ आयी तो रूबी ने उठ कर उनके पाँव छुए .


“ जुग जुग जिओ , बैठो बेटी . “


रूबी बहुत देर तक माँ को देखे जा रही थी तो रोमित ने कहा “ क्या हुआ , ऐसे क्या देखे जा रही हो ? “


“ आपकी माँ कितनी सुंदर हैं . माँ अभी इतनी सुंदर हैं तो पहले और भी अच्छी लगती होंगी . “


माँ ने कहा “ बेटी , औरत को सुंदरता के साथ निर्धनता भी मिले तो वह मुसीबत बन जाती है . और इसी मुसीबत से बचने के लिए मेरे बापू ने रोमित के बापू के साथ मेरी शादी कर जल्दी से छुटकारा पा लिया . पर तुम तो मुझसे भी कई गुना ज्यादा सुंदर हो , है न रोमित ? “


रोमित ने पहली बार रूबी के चेहरे को गौर से देखा फिर ऊपर से नीचे तक एक बार देखा . वह मन में सोचने लगा कि माँ ठीक बोल रही है . रूबी के गेहुएं रंग , सुंदर होठों के अंदर स्वच्छ सफ़ेद अनारदाने सी चमकती सुव्यवस्थित दंत पंक्तियाँ ,घने और लम्बे काले बाल , सब उसकी सुंदरता के साक्षी थे , वह मुस्कुरा कर बोला “ हाँ माँ , रूबी बहुत सुंदर है . “


रूबी के गाल शर्म से आरक्त हो गए थे . तभी माँ बोली “ चाय पिओ . “


थोड़ी देर में रूबी उठी और माँ को प्रणाम कर चलने को हुई तो रोमित भी उसको छोड़ने कार तक आया . रास्ते में वह बोली “ घर में मैंने साइकिल देखी है , तब आप पैदल इतनी दूर चल कर स्कूल क्यों आते हैं ? आने जाने में आपका काफी समय भी बर्बाद होता है . “

“ वह बाबूजी की साइकिल है . दो साल पहले तक ठीक थी , अब उसके रिम और टायर ट्यूब्स बदलने होंगे तभी चलने लायक होगी . “


रूबी ने उसके कहने का तात्पर्य समझते हुए कहा “ मैंने आपकी रचनाओं वाली कॉपी देखी है . उनमें अधिकतर अच्छी हैं . उन्हें आप लोकल न्यूज़ पेपर में दे सकते हैं , उन्हें वीकेंड विशेषांक के लिए रचनाओं की जरूरत होती है . लेखकों को कुछ पारिश्रमिक भी मिलती है . “


“ मैं किसी की खुशामद करना नहीं जानता हूँ और न ही चाहता हूँ . “

क्रमशः